Thursday, November 19, 2009

मैं थक गयी हूँ जानम
कंधो पे डाले कब से
बीते दिनों की यादें
तुम्हारी रह-गुज़र में
गुमसुम खड़ी हुई हूँ
इक आस सी हैं दिल को
पलटोगे तुम कभी तो
लेकिन ए मेरे जानम
तुमसे मेरी तरफ तक
जितने भी रास्ते हैं
वो बद्ग्गुमानो के
कांटों से भर चुके हैं
कांटों मैं मेरी खातिर
कोई रास्ता बना लो...
बस अब मुझे " मना लो......!!"