Thursday, August 12, 2010

उसे इतना चाहती क्यों हो ?



आज इतनी चुपचाप और उदास क्यों हो ?
आज से पहले तो तुम भी न थीं ऐसी,
फिर आज क्यों हो ?
क्या किसी से दिल लगा बैठे हो तो उदास क्यों हो ?
तोड़ा है किसी ने दिल तुम्हारा तो परेशान क्यों हों ?
बहुत है चाहने वाले तुम्हें दुनिया में,
इस तरह खामोश क्यों हो ?
कोई और होगा अच्छा किस्मत में तुम्हारी
फिर इतनी गम में डूबी क्यों हो ?
उसे क्या पता तुम क्या हो,
तुम उसके लिये इतनी बैचेन क्यों हो ?

जिसे नहीं फिक्र तुम्हारी, उसे इतना चाहती क्यों हो ?

मौत के संग वफ़एः दफ़न नही होती



मौत के संग वफ़एः दफ़न नही होती

सच्ची मोहब्बत की आदाय काम नही होती

यक़ीन ना होता जो तुझ पर इस दिल को

तेरे दिल में इस मोहब्बत की आच पनपी ना होती

में लफ्जों से कुछ भी इज़हार नहीं करती,

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में लफ्जों से कुछ भी इज़हार नहीं करती,
इसका मतलब ये नहीं की मैं उससे प्यार नहीं करती,
चाहती हूँ मैं उसे आज भी,
पर उसकी सोच में अपना वक़्त बेकार नहीं करती,
तमाशा न बन जाये कहीं मोहब्बत मेरी,
इसलिए अपने दर्द का इज़हार नहीं करती,
जो कुछ मिला है उसी में खुश हूँ मैं,
उसके लिए खुदा से तकरार नहीं करती,
पर कुछ तो बात है उसकी बातों में,
वरना उसे चाहने की खता बार-बार नहीं करती..

मैं कल तक रुक न पाउंगी..


वक्त कहता है मैं फिर न आउंगी..

तेरी आँखों को अब न रुलाउंगी..

जीना है तो इस पल को जी ले..

मैं कल तक रुक न पाउंगी..

सबको छोड़ने क़ा मन करता हैं

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सबको छोड़ने क़ा मन करता हैं

सबसे कही दूर जाने क़ा मन करता हैं

न किसी से प्यार करू

न किसी के प्यार के काबिल बनू

न किसी से दिल लगाऊ

न किसी क़ा दिल तोडू

न किसी पे ऐतबार करू

न किसी क़ा इंतज़ार करू

सबसे नाता तोड़ने क़ा मन करता हैं

न किसी से बात करू

न कोई वादा करू

न कोई वफ़ा की उम्मीद करू

न किसी से बेवफाई करू

न किसी को अपना कहू

न किसी को यादों में बसाऊ

खुद से प्यार को दूर करने क़ा मन करता हैं

न कोई दुआ करू न किसी पे यकीन

न कोई रास्ता धुंडू न कोई मंजिल

न कोई सपना सजाऊ न कोई इरादे

रात को नींद का न सुबह उठने क़ा

न खुद से न कोई परायों से

खुद से दूर जाने क़ा मन करता है

दुनिया से अलग होने क़ा मन करता है

न दुःख पे आंसू बहाऊ

न ख़ुशी से झूम उठू

न किसी के मिलने पे मुस्कुराऊ

न किसी के बिचादने क़ा शोक मनाऊ

न खुद के लिए रोऊ न किसी और के लिए

कही खो जाने क़ा मनन करता है

हकीकत से मुह मोड़ने क़ा मन करता है

सुब कुछ मिला सकून की दोलत नहीं मिली...


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तुम ने तो कह दिया मोहब्बत नहीं मिली

मुझ को तो यह भी कहने की मोहलत नहीं मिली

नींदों के दिस जाते कोई खवाब देखते

लेकिन दिया जलने से फुर्सत नहीं मिली

तुझ को तो खैर शहर के लोगों क़ा खौफ था

और मुझ को अपने घर से इजाज़त नहीं मिली

बेजार यूं हुए के तेरे एहद में हमें

सुब कुछ मिला सकून की दोलत नहीं मिली...
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हज़ार ग़म थे मेरी ज़िन्दगी अकेली

हज़ार ग़म थे मेरी ज़िन्दगी अकेली थी

ख़ुशी जहां की मेरे वास्ते पहेली थी

वफ़ा की तलाश तो अक्सर बेवफाओं को होती है

हम ने तो दुनिया ही छोड़ दी किसी की वफ़ा के लिए