Thursday, July 29, 2010

तेरे बिना


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मन लगाने के कितने बहाने किये
किन्तु तेरे बिना मान लगा ही नही


थाम ली प्रीति ने
याद की बाँसुरी
किन्तु वह भी हृदय में
फिरी बन छुरी


गीत गाने के कितने बहाने किये
किंतु तेरे बिना सुर जगा ही नहीं


बीन के तार पर
उंगलियाँ छिल गई
स्वर उठा तो
उन्हें आँधियाँ मिल गई


मुस्कराने के कितने बहाने किये
पर किसी भी हँसी ने ठगा ही नही

"तुम्हें भुलाना मुश्किल है "


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तुम्हें भुलाना मुश्किल है
कैसे भूल जाऊं उस मुकाम को
वही हमारी यादें थी

तब हमारे होठों पर बस
मिलने की फरियादें थी
मिलने से पहले ही
क्यों हम जुदा हो गये

हुई क्या खता मुझसे
जो तुम खफ़ा हो गये
काश! तुम समझ सकते
मेरे भी सीने मे दिल है
तुम्हें भुलाना मुश्किल है

कितनी आसानी से तुमने
प्यार को दोस्ती का नाम दे दिया था
तुम्हीं तो थे जिसे मैनें
दिलों-जां से प्यार किया था

वैसे तो सारी ज़िंदगी में
आज के बाद कल है
तुम्हें भुलाना मुश्किल है

बंधनों में बंधना है
किसी प्यार का अंज़ाम नहीं
करते रहे गिला सभी से
यह भी कोई काम नहीं

सच्चा हो प्यार अगर
तो शिकायत नहीं होती
बंधनों मे बँधनें की
सभी की इनायत नहीं होती

मेरे जीवन मे तो अब
तुम्हारे यादों की महफिल है
तुम्हें भुलाना मुश्किल है


मुझे ज़िन्दगी की तलब नहीं


मुझे ज़िन्दगी की तलब नहीं, मौत का इंतज़ार हैं.


चलते चलते यह फ़न भी सिख लिया हमने;
दौरान-ए-सफ़र कैसे होटों पे हसीं सजाते हैं.........