Thursday, April 15, 2010

गलती उनकी नहीं ..........


गलती उनकी नहीं

गलती हमारी थी

जो चाँद को अपना समझ बैठे

मैं तो एक कोयला हूँ

जो अपने आप को एक हीरा समझ बैठे

मैं उसके काबिल नहीं

ये मुझको समझना चाहिए था

और एक मैं पागल

उन्हें अपनी तकदीर समझ बैठे

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी


ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
प्यार की राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये
किस लिये बुझ गई चाँदनी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
कल जो बाहों में थे
और निगाहों में थे
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
न वो अंदाज़ है
न वो आवाज़ है
अब वो नर्मी कहाँ खो गई
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
बेवफ़ा तुम नहीं
बेवफ़ा हम नहीं
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये
प्यार तुम को भी है
प्यार हम को भी है
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

हम को तुम खो दोगे


मेरी रूह निकलने वाली होगी
मेरी सांस बिखरने वाली होगी
फिर दामन ज़िन्दगी का छूटेगा
धागा सांस का भी टूटेगा
फिर वापिस हम ना आयेंगे
फिर हम से कोई ना रूठेगा
फिर आँखों में नूर ना होगा
फिर दिल ग़म से चूर ना होगा
उस पल तुम हम को थामोगे
हम से दोस्त अपना मांगोगे
फिर हम ना कुछ भी बोलेंगे
आंखें भी ना खोलेंगे
उस पल तुम रो दोगे
हम को तुम खो दोगे

क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ...


क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!
मिलते थे तुम मुझसे मेरी जिंदगी की तरह ,
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!

पहले तुम्हारी सब शिकायते , शिकवे और गिले
अपनेपन का कोमल एहसास लिए होते थे ,
अब क्यों लगता है कि हम मिलके भी नहीं मिले
और क्यों ये अपनापन भी लगता है , बेरुखी कि तरह
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!

हमारे बीच में अब भी, ये उलझन क्यों है
दोस्ती के इस पाक रिश्ते में, ये घुटन क्यों है,
क्यों अब भी गलतफहमियों के लिए जगह बाकि है
क्यों दोस्ती निभाते हो मुझसे, दुश्मनी कि तरह
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!

तुम्हे मुझसे कुछ भी छिपाने कि जरुरत क्यों है
खुश हो तुम तो, तुम्हारी ख़ुशी में , बनावट क्यों है,
काश तुम मिलके मेरे इन सवालो का जवाब दे दो
काश फिर कभी तुम मिलो मुझे , मेरी ज़िन्दगी कि तरह
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!

जिन्दगी को इस तरह जीना


जिन्दगी को इस तरह जीना कोई कोई मिले

कभी तो खुद से नज़र से मिला सको

मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे आगे

तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे

सच्चा प्यार


सच्चा प्यार
मै तो आइना हूँ तू जैसी दिखती है मै
तो वैसी ही बात कहूं
तेरी झूठी तारीफ करने करने का
हुनर मुझमे नहीं

देख तेरी आँखों मै आंसू
दिल मेरा भी रोता है
पर झूठा अपनापन दिखाने
करने का हुनर मुझमे नहीं

चाहत जिंदगी भर के
साथ की है मेरी
यूं पल भर के सुख के खातिर
उपहार भेंट करने का हुनर मुझमे नहीं

प्यार सच्चा हो
और हो दिल दिल की गहराई से
यूं मीठी मीठी बात्तें
करने का हुनर मुझमे नहीं

पाक दिल है
मन कांच सा साफ़ है
मन मै कुछ हो
और जुबान पर कुछ और लाने
का हुनर मुझमे नहीं

मैं चाहती हूँ तुझे
दिल की गहराई से
पर आपने प्यार का
इज़हार करने का हुनर मुझमे नहीं
हुनर मुझमे नहीं............


ज़िन्दगी एक किताब की तरह हैं

उसके पन्नो की तरह

ज़िन्दगी भी पलटती रहती हैं

कब कोन सी कहानी शुरू हो जाये पता नहीं

जब इस ज़िन्दगी रूपी किताब के पन्ने ख़तम होंगे

तो जिंदगी भी ख़तम हो जाएगी

उनकी याद


हम उनकी याद में रोते बहुत हैं

कैसे बताये उन्हें वो याद आते बहुत हैं

वो पल जो साथ बीताये हमने

वो हर बात याद आती बहुत हैं