Thursday, April 15, 2010

क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ...


क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!
मिलते थे तुम मुझसे मेरी जिंदगी की तरह ,
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!

पहले तुम्हारी सब शिकायते , शिकवे और गिले
अपनेपन का कोमल एहसास लिए होते थे ,
अब क्यों लगता है कि हम मिलके भी नहीं मिले
और क्यों ये अपनापन भी लगता है , बेरुखी कि तरह
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!

हमारे बीच में अब भी, ये उलझन क्यों है
दोस्ती के इस पाक रिश्ते में, ये घुटन क्यों है,
क्यों अब भी गलतफहमियों के लिए जगह बाकि है
क्यों दोस्ती निभाते हो मुझसे, दुश्मनी कि तरह
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!

तुम्हे मुझसे कुछ भी छिपाने कि जरुरत क्यों है
खुश हो तुम तो, तुम्हारी ख़ुशी में , बनावट क्यों है,
काश तुम मिलके मेरे इन सवालो का जवाब दे दो
काश फिर कभी तुम मिलो मुझे , मेरी ज़िन्दगी कि तरह
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!
क्यों मिलते हो आज कल इक अजनबी की तरह ......!

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