Thursday, September 24, 2009

....और ज़िन्दगी ठहर गयी

समय की धार
तेज़ रफ्तार
हमारी नासमझी
हमारी तकरार
छोटी सी बात
दुनिया बदल गयी
छोटी सी ठेश
खुशियाँ बिखर गयी
इक छोटी सी भूल
और साँसे उखर गयी
इक छोटी सी चूक
और ज़िन्दगी ठहर गयी ......

आप चुप क्यों हैं ?

दिल तो हमने लगाया था आप चुप क्यों हैं ?
दाव तो हमने गवाया था आप चुप क्यों हैं ?
लोग क्या नहीं कहते है हमें दुनिया मैं
आप का नाम भी आया हैं आप चुप क्यों हैं ?
ये तो कहिये की नज़र क्यों हैं खोई खोई हुई
भेद क्या हमसे छुपाया हैं आप चुप क्यों हैं ?

Tuesday, September 15, 2009

वो रात काटनी कोई आसान भी न थी

मैं हिज्र के अज़ाब से अनजान भी न थी,
पर क्या हुआ की सुबह तलक जान भी न थी
आने में घर मेरे तुझे जितनी झिझक रही,
इस दरजा तो मैं बेसर-ओ-सामान भी न थी
इतना समझ चुकी थी मैं उसके मिज़ाज को,
वो जा रहा था और मैं हैरान भी न थी
दुनिया को देखती रही जिसकी नज़र से मैं,
उस आँख में मेरे लिए पहचान भी न थी
रोती रही अगर तो मैं मजबूर थी बहुत,
वो रात काटनी कोई आसान भी न थी

अब तो मरना ही दवा हो जैसे

चारागर हार गया हो जैसे,
अब तो मरना ही दवा हो जैसे
मुझसे बिछड़ा था वो पहले भी मगर,
अब के ये ज़ख्म नया हो जैसे
मेरे माथे पे तेरे प्यार का हाथ,
रूह पर दस्त-ऐ-सबा हो जैसे
यूं बहुत हँस के मिला था लेकिन,
दिल ही दिल में वो खफा हो जैसे
सर छुपायें तो बदन खुलता है,
ज़ीस्त मुफ़लिस की रिदा हो जैसे

सोचा नहीं अच्छा बुरा, देखा सुना कुछ भी नहीं

सोचा नहीं अच्छा बुरा, देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा तुझे, देखा तुझे, चाह तुझे, पूजा तुझे
तेरी खता तेरी वफ़ा, तेरी खता कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात दिन
भेजा वही कागज़ उससे हमने लिखा कुछ भी नहीं
इक शाम के साए तले बैठे रहे वो तेर तक.....!
आंखों से की बातें बहुत मुह से कहा कुछ भी नहीं

मैं अपने सीने मैं खंजर उतार सकती हूँ


दिल-ओ-निगाह मैं तुझको उतार सकती हूं
मैं सारी उमर तुझको पुकार सकती हूँ
तू इंतज़ार मैं एक पल भी नही जी सकता
मैं तेरे इंतज़ार मैं सदियाँ गुज़र सकती हूँ
वोह एक तू है मुझको बदल नही सकता
यह एक मैं हूँ कि तुझको निखार सकती हूँ
अगर है खून कि हाजत तुझे चमन के लिये
मैं अपने सीने मैं खंजर उतार सकती हूँ



जाने कब मेरी रुह को सुकून आएगा.......

जाने कब तेरा नाम मेरी जिंदगी से जाएगा
और जाने कब मुझे तेरे बिन जीना आएगा
अब तक तो काटती है पल पल यह जिंदगी
जाने कब मेरी रुह को सुकून आएगा.......

जो देखते हैं तो फिर आँख भर के देखते हैं...

बचा ही किया है सो हद से गुज़र की देखते हें
की टूट कब के चुके पर अब बिखर की देखते हैं
सुना है जो भी गया उस को मिल गई मंजिल
सो उस की राह से हम भी गुज़र की देखते हैं
सितारा एक अभी आसमान पे बाकी है
कुछ इंतज़ार ज़रा और कर की देखते हैं
बस एक झलक से तो मिलता नहीं नज़र को क़रार
जो देखते हैं तो फिर आँख भर के देखते हैं...

मुझे महसूस भी न होने दिया

मुझे महसूस भी न होने दिया ,
यूँ कहानी को उसने मोड़ दिया,
मिलने जुलने और बात करने में कमी की पहले ,
फिर रफ्ता रफ्ता उसने मुझे छोड़ दिया

हार मेरे नाम करदो !!! ....

आगाज़ मैंने किया था
तुम इख्तेताम करदो ! ....
जब चाहो मेरे जज्बों को
बेनाम करदो ! ....
बात अगर, ज़र्फ़....की है !!
तोह यूँ करो....
तुम जीत जाओ !
हार मेरे नाम करदो !!! ....

पल भर मैं तमाम उमर की सोचें बदल जाती हैंजिन राहों पे चलते हैं वोही राहें बदल जाती हैंकरने को किया नही करते लोग मुहब्बत मैंसिर्फ़ हमारे लिए हे क्यूँ रस्में बदल जाती हैंवोह ऐसा है की उस की नाम सुनने की तस्वूर से हेहमारी तमाम तर साअतें बदल जाती हैंसोचती हूँ जाने कैसे कह पाऊँगी मैं उससेमिलती हूँ तो दिल की सारी बातें बदल जाती हैंचाहे मंजिल दुशवार हो और दूर भीहमसफ़र उस जैसा हो तो मुसाफ्तें बदल जाती हैंयूँ तो रात का आलम हसीं होता है मदहोश भीमगर चाँद देखूं तो मेरी रातें बदल जाती हैंमत चाहो की मुझे आदत नही इतना चाहने वालों कीयह ना हो लोग कहें जल्द ही आदतें बदल जाती हैं

Monday, September 14, 2009

मेरी किस्मत मे नहीं हो तुम

इक दिन उसने पूछा
की मै कहाँ हूँ
मैंने कहाँ
मेरे दिल मै
मेरी जान मै हो तुम
मेरी सांस मे हो तुम
मेरी आस मे हो तुम
मेरी दिल की धडकनों मे हो तुम
मेरी आखरी सांस मे हो तुम
फिर पूछा मुझसे कहाँ नहीं हूँ मैं
मैंने रुक के कहाँ
बस मेरी किस्मत मे नहीं हो तुम

जिंदगी में यादों के भी सहारे होते है

हर सागर के दो किनारे होते है,
कुछ लोग जान से भी प्यारे होते है,
ये ज़रूरी नहीं हर कोई पास हो,
क्योंकी जिंदगी में यादों के भी सहारे होते है !

क्या पता कब साथ छूट जायेगा

सांसो का पिंजरा किसी दिन टूट जायेगा
फिर मुसाफिर किसी राह में छूट जायेगा
अभी साथ है तो बात कर लिया करो
क्या पता कब साथ छूट जायेगा

मुझे सपनो की आदत डालते हो...........

सपनो से शिकायत नहीं मुझे
जब आँखों में नींद न हो..............
अपनों से शिकायत नहीं मुझे
जब कोई अपना न हो...........
तुम गैर होकर भी मुझे अपनों का अहसास दिलाते हो
यह पता है मुझे झोड़ जायेगे वही चोराहे पर
क्यों मुझे सपनो की आदत डालते हो...........

अपना भी नसीब नहीं हुआ

मांगी थी दुआ आशियाने की...
मगर खंडर भी नसीब नहीं हुआ
चाह थी दिल में मोहब्बत की
मगर कोई अपना भी नसीब नहीं हुआ ......

♣♥♣ ~ समर्पण ~ ♣♥♣

आज दिल में बहुत दर्द है
शारीर मन की वेदनाओ से तड़प रहा
है मन में आसूं की किरने लुप्त हो रही है
आखो में जैसे सेलाब भरा पड़ा है
दूर उस सांज में सूरज को देखकर ये याद आ रहा है
की कभी सोचा था की जैसे ....
सूरज का पैर लगके कुमकुम की थाली
पुरे आसमान पर गिर पड़ी हो
सांज का दर्पण जैसे मेरे दिल में टूट रहा था
मेरी उमीदो का सूरज जैसे डूब रहा था
सामने जैसे इक खायी दिख रही थी
जिस में डूब जाना मेरी किस्मत बन रही थी
जिंदगी में भी कभी कितने फासले बढ़ जाते है
जिन रिश्ते में कभी कोई पड़ता न हो उन रिस्तो के बिच....
लम्बी दिवार कड़ी हो जाती है हाँ सच है ये की..........
बहुत ज्यादा प्यार भी जान ले लेता है
तकलीफ होगी बता के उसको ये सोच कर ही दिल खुद को बोलने से रोक देता है
अँधेरा है अब जीवन में ये सोचकर ....
मैंने इक कदम बढाया ....
गहरी खाई जैसे नज़दीक आ रही थी
जैसा आज फैसला हो ही जाना था
जीवन और मौत में कोई इक जीत जाना था
पर कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था
तुफानो में गिरते पतों को शायद वृक्ष ने रोक
लिया इक अनजानी सी डोर मुझे थाम
रही थीकह रही थी जैसे ...
मत जाओ अभी ये वक़्त नहीं ....
की तुम्हारे विश्वास की कड़ियाँ इतनी कमज़ोर नहीं मुडके देखा तो
पीछे कोई नहीं था पर मेरे हाथ को तो किसी ने थाम रखा
था हाँ शायद वो इक ठंडी हवा का झोंका था
पर नहीं वो तो मेरी आस्था और विश्वास का दिया था
जो इतने तुफानो में भी बुझ नहीं पाया था
धीरे-२ जैसे तूफ़ान थम रहा था
जो अब तक गहरी अँधेरी खाई थी
वो मेरे दिल की गहराई बन चुकी थी
की जिसको समझने की जद्दो ज़हद की मैंने
जिंदगी भरउस दिल की गहराई मैंने नाप ली थी
वो जीत मेरे जीवन की म्रृत्यु पर नहीं थी
बल्कि वो घड़ी मेरे समर्पण की थी
समर्पण उसे जिसे मैं जानती नहीं ....
पर जो मेरी आस्था और विश्वास का प्रतिरूप है
मेरी आत्मा को जिस पर पूरा भरोसा है
हाँ मैंने उसे ही खुद को समर्पित किया है

याद रखना भी तो सिखाया आपने

दिलो को हमसे चुराया आपने ,
दूर होकर भी अपना बनाया आपने,
कभी भूल नहीं पायेंगे हम आपको,
क्योंकि याद रखना भी तो सिखाया आपने

छू कर देखो मर गयी हूँ मैं....

क्यों नाकाम हो गई मेरी सारी दुआएं,
क्यों कोई गुनाह कर गयी हूँ मैं....
मत दो मुझे जीने की दुआ ,
छू कर देखो मर गयी हूँ मैं....

Saturday, September 12, 2009

करो वादा.........

करो वादा मेरे मरने पर आओगे....
और मुझे अपने हाथो से दफंओगे.....
आओगे मेरी मयत पर अपनों की तरह.....
सामने दुनिया के आंसू भी बहाओगे.....
बताओगे नहीं किसी को हमारी अलहदगी का सबब...
वो पुराना प्यार दुनिया को दिखाओगे.....
दोंगे सबसे ज्यादा कन्धा मुझे....
उमर भर मेरे नाम से न घबराओगे.....
छोड़ कर ज़माने भर की खुशियाँ मेरे लिए...
और मेरे दिल से अपना गम मिटाओगे......
रोज़ आया करोगे मेरी कबर पर......
और दुआ के लिए हाथ भी उठाओगे....
करो वादा.........

उसने मुझे ऐसा बना दिया

हम तो शायर न थे कभी.......
शायरी तो उनकी यादो ने सिखा दी हमें !!
हम तो आशिक न थे कभी ....
आशिकी तो उनकी बातो ने शिखा दी हमें !!
हम तो दीवाने न थे कभी .....
दीवानगी तो उनके प्यार ने सिखा दी हमें !!
हम तो रोते न थे कभी.....
रोना तो हमें उनकी तन्हाई ने सिखा दी हमें !!
शब्दों को प्यार भरे अल्फाजो में बोलने वाले हम तो न थे......
इस तरह बोलना तो उनकी मोहब्बत ने सिखा दिया हमें !!
अपने प्यार का इज़हार करने वाले तो हम न थे ......
लेकिन उनके इकरार ने इज़हार करना सिखा दिया हमें !!

याद ही आता रहा .....


वो अपनी सारी नफरतें मुझ पे लुटाता रहा...
मेरा दिल जिसको सदा मोहब्बत्तें सिखाता रहा...
उस की आदत का ज़रा यह पहलु तो देखो...
मुझसे किए वादे वोह किसी और से निभाता रहा .....
कुछ खबर नहीं वो शख्स क्या चाहता था ......
के तालुक तोड़ कर भी मुझ को आजमाता रहा ....
टूटे हुए तालुक में भी कितनी मजबूती है.....
मैं जितना भूलती रही वो उतना याद ही आता रहा .....