मुझे पढो तो ज़रा अहतियात से पढना
मुझे पढो तो ज़रा अहतियात से पढना खुद अपनी जात में बिखरी हुई किताब हूँ मैं ......
Tuesday, September 15, 2009
मुझे महसूस भी न होने दिया
मुझे महसूस भी न होने दिया ,
यूँ कहानी को उसने मोड़ दिया,
मिलने जुलने और बात करने में कमी की पहले ,
फिर रफ्ता रफ्ता उसने मुझे छोड़ दिया
1 comment:
संजीव द्विवेदी
November 21, 2009 at 8:33 AM
बहुत सुंदर
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बहुत सुंदर
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