Tuesday, September 15, 2009

अब तो मरना ही दवा हो जैसे

चारागर हार गया हो जैसे,
अब तो मरना ही दवा हो जैसे
मुझसे बिछड़ा था वो पहले भी मगर,
अब के ये ज़ख्म नया हो जैसे
मेरे माथे पे तेरे प्यार का हाथ,
रूह पर दस्त-ऐ-सबा हो जैसे
यूं बहुत हँस के मिला था लेकिन,
दिल ही दिल में वो खफा हो जैसे
सर छुपायें तो बदन खुलता है,
ज़ीस्त मुफ़लिस की रिदा हो जैसे

No comments:

Post a Comment