दिल-ओ-निगाह मैं तुझको उतार सकती हूं
मैं सारी उमर तुझको पुकार सकती हूँ
तू इंतज़ार मैं एक पल भी नही जी सकता
मैं तेरे इंतज़ार मैं सदियाँ गुज़र सकती हूँ
वोह एक तू है मुझको बदल नही सकता
यह एक मैं हूँ कि तुझको निखार सकती हूँ
अगर है खून कि हाजत तुझे चमन के लिये
मैं अपने सीने मैं खंजर उतार सकती हूँ
मैं सारी उमर तुझको पुकार सकती हूँ
तू इंतज़ार मैं एक पल भी नही जी सकता
मैं तेरे इंतज़ार मैं सदियाँ गुज़र सकती हूँ
वोह एक तू है मुझको बदल नही सकता
यह एक मैं हूँ कि तुझको निखार सकती हूँ
अगर है खून कि हाजत तुझे चमन के लिये
मैं अपने सीने मैं खंजर उतार सकती हूँ
वाह !! क्या शै है।
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