Monday, September 14, 2009

♣♥♣ ~ समर्पण ~ ♣♥♣

आज दिल में बहुत दर्द है
शारीर मन की वेदनाओ से तड़प रहा
है मन में आसूं की किरने लुप्त हो रही है
आखो में जैसे सेलाब भरा पड़ा है
दूर उस सांज में सूरज को देखकर ये याद आ रहा है
की कभी सोचा था की जैसे ....
सूरज का पैर लगके कुमकुम की थाली
पुरे आसमान पर गिर पड़ी हो
सांज का दर्पण जैसे मेरे दिल में टूट रहा था
मेरी उमीदो का सूरज जैसे डूब रहा था
सामने जैसे इक खायी दिख रही थी
जिस में डूब जाना मेरी किस्मत बन रही थी
जिंदगी में भी कभी कितने फासले बढ़ जाते है
जिन रिश्ते में कभी कोई पड़ता न हो उन रिस्तो के बिच....
लम्बी दिवार कड़ी हो जाती है हाँ सच है ये की..........
बहुत ज्यादा प्यार भी जान ले लेता है
तकलीफ होगी बता के उसको ये सोच कर ही दिल खुद को बोलने से रोक देता है
अँधेरा है अब जीवन में ये सोचकर ....
मैंने इक कदम बढाया ....
गहरी खाई जैसे नज़दीक आ रही थी
जैसा आज फैसला हो ही जाना था
जीवन और मौत में कोई इक जीत जाना था
पर कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था
तुफानो में गिरते पतों को शायद वृक्ष ने रोक
लिया इक अनजानी सी डोर मुझे थाम
रही थीकह रही थी जैसे ...
मत जाओ अभी ये वक़्त नहीं ....
की तुम्हारे विश्वास की कड़ियाँ इतनी कमज़ोर नहीं मुडके देखा तो
पीछे कोई नहीं था पर मेरे हाथ को तो किसी ने थाम रखा
था हाँ शायद वो इक ठंडी हवा का झोंका था
पर नहीं वो तो मेरी आस्था और विश्वास का दिया था
जो इतने तुफानो में भी बुझ नहीं पाया था
धीरे-२ जैसे तूफ़ान थम रहा था
जो अब तक गहरी अँधेरी खाई थी
वो मेरे दिल की गहराई बन चुकी थी
की जिसको समझने की जद्दो ज़हद की मैंने
जिंदगी भरउस दिल की गहराई मैंने नाप ली थी
वो जीत मेरे जीवन की म्रृत्यु पर नहीं थी
बल्कि वो घड़ी मेरे समर्पण की थी
समर्पण उसे जिसे मैं जानती नहीं ....
पर जो मेरी आस्था और विश्वास का प्रतिरूप है
मेरी आत्मा को जिस पर पूरा भरोसा है
हाँ मैंने उसे ही खुद को समर्पित किया है

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