Thursday, July 29, 2010

तेरे बिना


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मन लगाने के कितने बहाने किये
किन्तु तेरे बिना मान लगा ही नही


थाम ली प्रीति ने
याद की बाँसुरी
किन्तु वह भी हृदय में
फिरी बन छुरी


गीत गाने के कितने बहाने किये
किंतु तेरे बिना सुर जगा ही नहीं


बीन के तार पर
उंगलियाँ छिल गई
स्वर उठा तो
उन्हें आँधियाँ मिल गई


मुस्कराने के कितने बहाने किये
पर किसी भी हँसी ने ठगा ही नही

1 comment:

  1. उत्‍तमम् काव्‍यम्


    शोभनम्

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