Thursday, August 12, 2010

सबको छोड़ने क़ा मन करता हैं

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सबको छोड़ने क़ा मन करता हैं

सबसे कही दूर जाने क़ा मन करता हैं

न किसी से प्यार करू

न किसी के प्यार के काबिल बनू

न किसी से दिल लगाऊ

न किसी क़ा दिल तोडू

न किसी पे ऐतबार करू

न किसी क़ा इंतज़ार करू

सबसे नाता तोड़ने क़ा मन करता हैं

न किसी से बात करू

न कोई वादा करू

न कोई वफ़ा की उम्मीद करू

न किसी से बेवफाई करू

न किसी को अपना कहू

न किसी को यादों में बसाऊ

खुद से प्यार को दूर करने क़ा मन करता हैं

न कोई दुआ करू न किसी पे यकीन

न कोई रास्ता धुंडू न कोई मंजिल

न कोई सपना सजाऊ न कोई इरादे

रात को नींद का न सुबह उठने क़ा

न खुद से न कोई परायों से

खुद से दूर जाने क़ा मन करता है

दुनिया से अलग होने क़ा मन करता है

न दुःख पे आंसू बहाऊ

न ख़ुशी से झूम उठू

न किसी के मिलने पे मुस्कुराऊ

न किसी के बिचादने क़ा शोक मनाऊ

न खुद के लिए रोऊ न किसी और के लिए

कही खो जाने क़ा मनन करता है

हकीकत से मुह मोड़ने क़ा मन करता है

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