Thursday, November 19, 2009

मैं थक गयी हूँ जानम
कंधो पे डाले कब से
बीते दिनों की यादें
तुम्हारी रह-गुज़र में
गुमसुम खड़ी हुई हूँ
इक आस सी हैं दिल को
पलटोगे तुम कभी तो
लेकिन ए मेरे जानम
तुमसे मेरी तरफ तक
जितने भी रास्ते हैं
वो बद्ग्गुमानो के
कांटों से भर चुके हैं
कांटों मैं मेरी खातिर
कोई रास्ता बना लो...
बस अब मुझे " मना लो......!!"

7 comments:

  1. बहुत अहतियात से पढ़ा ... और डूबता चला गया ... काफी अच्छा संग्रह है ... ये दो शेर तो बहुत ही पसंद आये ...
    "अगर है खून कि हाजत तुझे चमन के लिये
    मैं अपने सीने मैं खंजर उतार सकती हूँ"

    "मिलने जुलने और बात करने में कमी की पहले ,
    फिर रफ्ता रफ्ता उसने मुझे छोड़ दिया"

    system ki problem ke karan follower nahi ban paya .. but aapko apni google reader list mein shamil kar liya hai...
    waiting for the next post ...

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  2. Achchhaa likha hai.ummeed hai age bhee achchhee rachanayen padhane ko milengee.

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  3. बहुत अहतियात से हमने तो पढा इसको यारा,
    आप बदगुमानी में भी एहतियात बरतना यारा ।

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