Thursday, February 11, 2010



कभी आंसू छुपा छुपा के रोये, कभी दास्ताँ-ए-ग़म सुना के रोये,

रात कटी है इन्तेजार-ए-यार में, हम रात भर तारों को जगा के रोये,

फिर वो न आया रात का वादा करके, हम तमाम रात शम्मा जला जला के रोये,

आज रात उनके आने की उम्मीद थी हमें, वो न आये हम घर सजा सजा के रोये,

सुना है दुआ से होती है मुराद दिल की पूरी, हम सारी रात हाथ उठा उठा के रोये !!

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