Thursday, February 11, 2010


यादों की डगर पर जब हो कोई आशियाना
लिख के कोरे कागज पर ख़त उनका दे जाना
शब के सन्नाटों में जब कोई दर्द छेड़े तराना
भीगी पलकों के वह आंसू मुझे दे जाना

चुपके से लिख लेना लकीरों में नाम मेरा
शबे तन्हाई में फ़िर आवाज़ दे के बुलाना
लिखा है जिस गजल को इंतज़ार में मेरी
बस वही गजल आ के मुझे सुना जाना

मचल रही हैं कई आरजू कई ख्वाशिएँ दिल में
दिल की बढती तड़प को एक सकून दे जाना
कभी यूं ही कर देना हैरान मुझे अपने आने से
कभी बहती हवा की खुशुबू में तुम भी आ जाना !!

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